रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
    
    
      ·1 min
    
    
    
  
  
  
    
  
      रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है